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अध्याय 3: रिश्ते में गहराई
नायरा और आरव के बीच की दोस्ती अब धीरे-धीरे एक नई दिशा में बढ़ रही थी। वे एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे थे, चाहे वह कॉफी शॉप में हो, पार्क में हो, या शहर की सड़कों पर यूँ ही घूमते हुए। आरव को नायरा के साथ हर एक पल एक नई ताजगी का अहसास दिलाता था। नायरा की हंसी, उसकी बातें, और उसकी बेपरवाह जीवन शैली आरव के मन को किसी अनजानी खुशी से भर देती थी। लेकिन इस खुशी के साथ, आरव के दिल में कुछ और भी पनप रहा था—एक अनकहा, अनजाना सा भाव जो सिर्फ दोस्ती से परे था।
आरव ने कई बार सोचा कि नायरा के प्रति उसकी भावनाएँ क्यों बदल रही हैं। क्या यह सिर्फ उसकी चिंता थी, या कुछ और? वह कई बार अपने दिल से सवाल करता, लेकिन उसे जवाब समझ में नहीं आता। जब भी वह नायरा के साथ होता, उसे एक खास किस्म की शांति और सुकून महसूस होता। यह भावना दोस्ती से ज्यादा थी, लेकिन वह इस अहसास को शब्दों में बयां नहीं कर पाता था।
एक दिन की बात है, आरव और नायरा शहर के एक पुराने किताबों की दुकान में गए थे। किताबें दोनों की कमजोरी थीं। वे अपनी-अपनी पसंद की किताबें चुन रहे थे और बातें कर रहे थे। नायरा ने एक किताब उठाई और उसे आरव को दिखाते हुए बोली, "तुम्हें यह किताब पढ़नी चाहिए। इसमें ज़िंदगी को जीने का एक अलग ही तरीका सिखाया गया है।"
आरव ने किताब को हाथ में लिया और मुस्कुराते हुए कहा, "तुम्हारी सिफारिश पर तो इसे पढ़ना ही पड़ेगा।" फिर उसने किताब के पन्ने पलटते हुए नायरा की तरफ देखा। उस पल में, आरव की नज़रें नायरा पर अटक गईं। वह उसकी मुस्कान, उसकी आँखों की चमक, और उसकी सहजता को निहारता रह गया। उसके मन में एक सवाल उठा—क्या वह नायरा से प्यार करने लगा है?
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उस शाम आरव अपने घर लौटते हुए काफी उलझन में था। उसके दिल में एक नई भावना ने जन्म लिया था, लेकिन वह इसे कबूल नहीं कर पा रहा था। उसने खुद से कई बार कहा कि यह सिर्फ दोस्ती है, लेकिन उसका दिल अब कुछ और ही कहानी कहने लगा था। उसे नायरा की हंसी, उसकी बातें, और उसके साथ बिताया हर पल अब और भी कीमती लगने लगा था।
दूसरी ओर, नायरा भी कुछ महसूस कर रही थी। वह आरव के साथ बिताए हर पल को संजोकर रखती थी। आरव की शांति, उसका धैर्य और उसकी समझदारी ने नायरा को बहुत प्रभावित किया था। हालांकि, नायरा ने कभी अपने मन में उठ रही भावनाओं को खुलकर नहीं सोचा। वह इस रिश्ते को सिर्फ दोस्ती की नजर से देख रही थी, लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल के एक कोने में आरव के प्रति एक खास भावनात्मक जुड़ाव था।
एक दिन, जब वे दोनों पार्क में टहलने गए थे, आरव अचानक से चुप हो गया। नायरा ने उसकी तरफ देखा और पूछा, "क्या हुआ? तुम अचानक चुप क्यों हो गए?"
आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कुछ नहीं, बस यूँ ही सोच रहा था।"
नायरा ने उसकी आंखों में देखा और कहा, "तुम्हारे चेहरे से तो ऐसा नहीं लगता कि कुछ भी नहीं हुआ। कुछ तो है, जो तुम्हें परेशान कर रहा है।"
आरव थोड़ा असहज महसूस कर रहा था। वह नायरा से अपने दिल की बात कहना चाहता था, लेकिन शब्द नहीं मिल रहे थे। उसने खुद को संभालते हुए कहा, "नायरा, कभी-कभी हम किसी से इतनी बातें करते हैं कि खुद की बातें ही छूट जाती हैं।"
नायरा ने उसकी बात को समझा, लेकिन वह चुप रही। उसे भी यह अहसास हो रहा था कि आरव के मन में कुछ चल रहा है, लेकिन उसने उसे समय देने का फैसला किया।
उस रात आरव अपने कमरे में बैठा, नायरा के बारे में सोचते हुए, उसने समझा कि यह सिर्फ दोस्ती नहीं है। वह नायरा से प्यार करने लगा है। उसे नायरा के साथ हर एक पल की चाहत थी, उसकी मुस्कान, उसकी बातें, और उसकी नज़दीकी। लेकिन वह इस बात को नायरा से कैसे कहे? क्या नायरा भी वही महसूस करती है जो वह कर रहा था?
दूसरी ओर, नायरा भी अपने बिस्तर पर लेटी यही सोच रही थी कि क्यों वह आरव के बारे में इतना सोचने लगी है। उसकी बातों, उसके साथ बिताए पलों ने उसके दिल में एक खास जगह बना ली थी। लेकिन क्या यह प्यार था, या सिर्फ एक गहरी दोस्ती? नायरा इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पा रही थी।
इस तरह, आरव और नायरा दोनों के दिलों में अनकही भावनाएँ पनपने लगी थीं। वे एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को लेकर उलझन में थे। उनके बीच की यह दूरी सिर्फ उनके दिलों की थी, जो खुलकर बात करने से शायद कम हो सकती थी।
यह वह दौर था जब उनका रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़ने लगा था, लेकिन इस बदलाव को वे समझने और स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थे। प्यार उनके दरवाजे पर दस्तक दे रहा था, लेकिन उसे दरवाजा खोलने में अभी थोड़ा और वक्त लगने वाला था।
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